इजाज़त थी मगर किसकी,
जो इतना पास आये तुम ।
कभी सोचा भी न था जो,
क्यों इतना गुदगुदाए तुम ।
महकती है फ़िज़ा अब भी,
तू जब सपनों में आती है ।
तुम्हें लगता नहीं है क्या ?
कहीं कुछ भूल आये तुम ।
गए कैसे थे इतराकर,
तुम्हें वापस भी आना था ।
मगर कुछ पल में यादों की,
कतारें तोड़ आये तुम ।
न आती अक्श में शायद,
तो दिल में टीस न उठती ।
वहीं ठहरा हूँ मैं अब तक,
जहाँ थे छोड़ आये तुम ।
जो इतना पास आये तुम ।
कभी सोचा भी न था जो,
क्यों इतना गुदगुदाए तुम ।
महकती है फ़िज़ा अब भी,
तू जब सपनों में आती है ।
तुम्हें लगता नहीं है क्या ?
कहीं कुछ भूल आये तुम ।
गए कैसे थे इतराकर,
तुम्हें वापस भी आना था ।
मगर कुछ पल में यादों की,
कतारें तोड़ आये तुम ।
न आती अक्श में शायद,
तो दिल में टीस न उठती ।
वहीं ठहरा हूँ मैं अब तक,
जहाँ थे छोड़ आये तुम ।
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