मेरा बिकना मुनासिब था

इजाज़त वक़्त देता तो, फ़ना खुद को भी कर लेते ।
सपने भी बिकते तो मेरा बिकना मुनासिब था ।
इनायत रब की होती तो, महक तुझे अपना भी कर लेते,
वरना तेरी बाहों सिर रखकर दफन होना मुनासिब था ।

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