दस्तक दी दिल पर

दस्तक दी दिल पर और मैं दूर निकल गया ।
जैसे कोई अपने घर से मजबूर निकल गया ।
थक गयी एहसासों को कहकर मेरी जुबान,
लफ़्ज़ों से मेरे जज़्बातें फितूर निकल गया ।
अनजान हो गयी हर दुआ हर आरज़ू मुझसे,
खाली हाथ उसके दर से जब खामोश निकल गया ।
मैं एक वजह ढूंढता रहा उसे खुश करने की,
और वो बेवजह दुखाकर मेरा दिल निकल गया ।
सज़ा देता क्या मुझको वो मेरी वफ़ा का "सर्व"
सामने क़ुबूल करके मैं बनकर चोर निकल गया।

No comments:

Post a Comment