अपनी ज़िन्दगी के नाम कुछ पैगाम अलग थे,
शायद अपनी मंजिले या अंजाम अलग थे ।
हर वक़्त हँसाते थे जज्बात वो एक दूजे के,
शायद दिन अपने थे लेकिन शाम अलग थे ।
एक पहचान थी मेरी, तुझमें भी और तुझसे भी,
शायद अपने कुछ उसूल और काम अलग थे ।
महकती थी आँखें जब हम तश्वीरों में आते थे,
शायद अपने हर रंगों में गुल-फ़ाम अलग थे ।
बीत चुका है कल फिर क्यों आज उसे दोहराएं,
शायद ज़िन्दगी के अपने मुकाम अलग थे ।
शायद अपनी मंजिले या अंजाम अलग थे ।
हर वक़्त हँसाते थे जज्बात वो एक दूजे के,
शायद दिन अपने थे लेकिन शाम अलग थे ।
एक पहचान थी मेरी, तुझमें भी और तुझसे भी,
शायद अपने कुछ उसूल और काम अलग थे ।
महकती थी आँखें जब हम तश्वीरों में आते थे,
शायद अपने हर रंगों में गुल-फ़ाम अलग थे ।
बीत चुका है कल फिर क्यों आज उसे दोहराएं,
शायद ज़िन्दगी के अपने मुकाम अलग थे ।
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