खुदा क्यों मांगता ?

तुझमें महक न होती मेरी, मैं हवा क्यों मांगता ?
एक ही दुआ पूरी होती, उम्मीद की वजह क्यों मांगता ?
संभल जाते कदम अगर मेरे एक ठोकर में,
मैं अपनों से ही फिर वफ़ा क्यों मांगता ?
ज़िन्दगी की इस सच्चाई से अनजान न होता,
फिर से इसे जीने की सज़ा क्यों मांगता ?
तकदीर लिखनी होती अगर अपने हाथों से,
अपने शब्दों से रूठ जाने की रज़ा क्यों मांगता ?
अगर "सर्व" साथ होता मेरे मेरा रहनुमा,
पत्थर के आगे झुक कर खुदा क्यों मांगता ?

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