मुक़म्मल हूँ आज

मुक़म्मल हूँ आज
मगर दर इस बात का है
अगर,
ज़िन्दगी का वो ही हिस्सा
हक़ीक़त न बन सका,
तो पूरा होकर भी कहीं
मैं अधूरा न रह जाऊं ।

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