रास्तों पर चलते हुए 

रास्तों पर चलते हुए 
मैं अक्सर सोचता हूँ 
आखिर मुझको
इन पर कब तक चलना होगा ।
क्या तब तक ?
जब तक मैं न थक जाऊं 
या तब तक ?
जब तक मैं खुद से न हार जाऊं
अक्सर ये बात 
मुझे परेशान करती हैं 
आखिर मुझको
इन पर कहाँ तक चलना होगा
जहाँ तक ये मुझे ले जाएँ 
या जहाँ तक मैं जाना चाहूँ 
मैं अपने रास्तों से 
बस इतनी कामना करता हूँ 
कि वो मुझको 
उस मोड़ पर लाकर छोड़ दें
जहाँ से मुझको 
मेरी मंजिल कुछ दूर नज़र आए

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