मुक़म्मल तू ज़िद्द थी मेरी

एहसासों का जनाज़ा लहरों पर निकल गया, 
और छूती हुई लहरें कभी वापस नहीं आती सर्व ।
आज चाहत में भी तेरी परछाई नहीं मिलती माएली,
कभी एक पल में मुक़म्मल तू ज़िद्द थी मेरी ।


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