Sarvjeet Kumar Singh
मुक़म्मल तू ज़िद्द थी मेरी
एहसासों का जनाज़ा लहरों पर निकल गया,
और छूती हुई लहरें कभी वापस नहीं आती सर्व ।
आज चाहत में भी तेरी परछाई नहीं मिलती माएली,
कभी एक पल में मुक़म्मल तू ज़िद्द थी मेरी ।
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