वो तेरी हर अदा अब भी है संग मेरे,
जिसकी चाहत जगी थी
घडी दो घडी ।
वो तेरे संग बितायी हुई हर सुबह,
कहती है हम मिलेंगे
कहीं न कहीं ।
आज फिर याद आई तेरी वो अदा
जिसपे हम हमनसीं
मर मिटे थे कभी ।
जिसकी चाहत जगी थी
घडी दो घडी ।
वो तेरे संग बितायी हुई हर सुबह,
कहती है हम मिलेंगे
कहीं न कहीं ।
आज फिर याद आई तेरी वो अदा
जिसपे हम हमनसीं
मर मिटे थे कभी ।
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