आदत के बाद फिर

आदत के बाद फिर दर्द भी देने लगी चाहत,
अब हंसी भी आती है और रोते भी रहते हैं ।
वक़्त ने बदल कर कितने रास्ते बदल दिए,
कोई दिखता ही नहीं राह में परछाई के अलावा ।
मंजिल दिखा कर उसने उसका पता छीन लिया,
लेकिन काफ़िर हूँ मैं, मुझे चलने की आदत थी ।
अब तो अपनी भी हमको जरुरत न रही,
एक वक़्त था जब तेरी जरुरत थे हम ।
अब तो ये भी जायज़ नहीं कि हर दर्द बता सकूँ,
कुछ दर्द ऐसे भी हैं, जो काफी दर्द देते हैं ।

No comments:

Post a Comment